एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया !

एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया !

एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया !

एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया !

नदी को लगा कि मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ !

 

एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा – बताओ ! मैं तुम्हारे लिए क्या क्या लाऊँ ?

मकान, पशु, मानव, वृक्ष आदि जो तुम चाहो, उसे मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ !

 

समुद्र समझ गया कि नदी को अहंकार हो गया है। उसने नदी से कहा – यदि तुम मेरे लिए कुछ लाना चाहती हो तो, थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ !

नदी ने कहा बस – इतनी सी बात ! अभी लेकर आती हूँ !

 

नदी ने अपने जल का पुरा जोर लगाया पर घास नहीं उखड़ी। नदी ने कई बार जोर लगाया पर असफलता ही हाथ लगी !

आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली – मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती !

 

जब भी घास को उखाड़ने के लिए पुरा जोर लगाती हूं तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ उपर से गुजर जाती हूं !

समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला – जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते है, ये आसानी से उखड जाते है !

 

किन्तु घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आंधी तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकता !!

दिन शुभ हो।

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