सरदार मानसिंह का जनक की भाँति ज्ञान प्राप्त करना: संत महिमा

सरदार मानसिंह का जनक की भाँति ज्ञान प्राप्त करनाः संत महिमा

सरदार मानसिंह का जन्म गुमती नामक ग्राम में हुआ था जो रामपुर फूल मण्डी के निकट मालवा के इलाके में है। आपके पिता बड़े गुरमुख तथा गुरुवाणी का पाठ करने वाले धार्मिक व्यक्ति थे। सरदार मानसिंह महाराजा रणजीत सिंह की सेवा मेें कर्नल के पद पर नियुक्त थे। उनकी शादी नरवड़ ग्राम में हुई थी। वे जब भी अपने ससुराल नरवड़ में आते तो उन्हें ठाकुर जी की प्रशंसा सुनने को मिलती। लोग उन्हें प्रेरित करते कि वे साधांवाली जाकर परमहंस ठाकुर जी के दर्शन अवश्य करें। इस पर मानसिंह सभी को एक ही उतर देते कि भाई हम तो इसवें पातशाह गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य हैं। ठाकुर जी परमहंस हैं। हम वहाँ जातें हुए अच्छे नहीं लगते। दूसरे अब कोई ऐसा सन्त भी नहीं है जो अष्टावक्र की तरह राजा जनक को घोड़े की रकाव में पैर रखते ही पल भर में ज्ञान दे दे।
एक बार सरदार मानसिंह किसी कार्यवश अचानक नरवड़ आये। उन्होने देखा कि उनकी ससुराल किसी कार्यवश अचानक नरवड़ आये। उन्होने देखा कि उनकी ससुराल के लोग वहाँ नही है। घर का ताला बन्द है, पड़ोस में पूछा कि सब सुख शान्ती तो है। ये लोग कहाँ गए हैं। किसी ने बताया कि सारा परिवार और ग्राम की संगत साधांवाली डेरे पर परमहंस ठाकुर जी के दर्शनार्थ गयी है। वहाँ सत्संग हो रहा है। मानसिंह ने सोचा कि मुझे नरवड़ वासियों ने कई बार ठाकुर जी के दर्शन करने की प्रेरणा दी है, मुझे भी आन्तरिक प्रेरणा मिल रही है कि मैं ठाकुर जी के दर्शन करुँ। वे अवश्य कोई चमत्कारी संत हैं जो मेरे मन को अपनी ओर खींच रहे हैं। मगर मैं उनकों तभी माथा टेकूंगा जब वे दशम पात्शाह गुरु गोविन्द सिंह के स्वरुप में दर्शन देंगे। ऐसा निर्णय लेकर सरदार मानसिंह ठाकुर जी के दर्शनों के लिए चले। उन्होने शराब की बोतल जो अपने साथ सेना से लाए थे रास्ते में एक झाड़ी में छुपा दी । द्वारे पहुँचने से पहले उन्होने घेड़ा भी छोड़ दिया। उन्होने मन्दिर में प्रवेश किया तो देखा कि सारी संगत गुरुवाणी के र्कीतन में मस्त है। पलंग सजा हुआ है उस पर दसवे पातशाह गुरु गोविन्द सिंह विराजमान हैं। उनके सिर पर सुन्दर कलगी है। कन्धे पर धनुष है और दायें हाथ के अगूँठे पर सफेद बाज़ सुशोभित है। वे अति सुन्दर वस्त्र धारण किए हैं। उनका नूर चारों ओर फैल रहा है। सरदार मान सिंह गद गद हो गए। श्री चरणों में माथा टेका, कुछ समय बाद जब सिर उपर उठाया तो देखा कि कलगीधर के स्थान पर ठाकुर जी विराजमान हैं। मानसिंह को बड़ी हैरत हुई। वे एक टक देखते ही रह गये। ठाकुर जी ने मुस्कराकर कहा, अरे मानसिंह शराब की बोतल को झाड़ी में क्यों छुपा आया । उसको अपने साथ ले आना था। भाई मानसिंह लज्जित हो गये। परमहंस जी ने कहा कि यह लीला तो तुम्हारी बुद्धी से अज्ञान का पर्दा हटाने के लिए की थी। सरदार मानसिंह ठाकुर जी के चरणों में पुनः नतमस्तक हुए और विनती की कि मुझे क्षमा करें। मुझसे भारी भूल हो गई है। मैं आपकी शक्ति को पहचान न सका था। आप दयालु हैं कृपा निधान हैं, भक्त वत्सल हैं।
थोड़ी देर बाद जब संगत कुछ कम रह गई तो ठाकुर जी ने कहा, आओ तुमको घोड़े पर चढ़ा आएंे, मानसिंह ने कहा महाराज साहब कृप्या आप ऐसा न करें। मैं स्वयं चढ़ जाउँगा। ठाकुर जी ने फरमाया, अरे तू कैसे चढ़ जायेगा, कोई भी अपने आप नहीं चढ़ सकता। जो भी चढ़ा है वह सत्गुरु और भगवान की कृपा से चढ़ा है। ठाकुर जी उसे घोड़े के पास लेकर गए और आदेश दिया कि मानसिंह घोड़े की रकाब में अपना पैर रखो। जिस वक्त मानसिंह ने रकाब में पैर रखा और घोड़े की पीठ पर चढ़ने को हुए तो परमहंस जी ने ईश्वरीय प्रकाश की ऐसी झलक दिखाई कि मानसिंह धड़ाम से भूमी पर गिर पड़े और उनकी समाधि लग गई। आठ दिन तक लगातार समाधि की स्थिति में रहे। नवें दिन ठाकुर जी ने उनका स्पर्श किया तो समाधि टूट गयी। वे चकित से चारों ओर देखने लगे। ठाकुर जी ने पूछा । मय-ए-हक पीने ककी और इच्छा हो तो कहो। मानसिंह बोले बस जी बस। इससे अधिक सहन होना कठिन है आपने तो मुझे छका दिया है चूर चूर कर दिया है और वह जीवन भर इसी मस्ती में जीये। उन्होने कर्नल का पद छोड़ दिया। उन्हे यह भी विश्वास हो गया कि अब भी अष्टावक्र के समान सिद्ध पुरुष हैं जो पल भर में ही आध्यात्मिक ज्ञान दे सकते हैं। आगे चलकर वे बाबा मानसिंह के नाम से प्रसिद्ध हुए। ठाकुर जी के भक्तों में उनका प्रमुख स्थान रहा।

Author Info

OmNandaChaur Darbar

The only website of OmDarbar which provide all information of all Om Darbars