आज हम सभी एक दूसरे को बापू श्रद्धा राम जी के आगमन दिवस की बधाईयां दे रहें हैं-सचमुच बधाई के पात्र तो हैं हम और हमारे
पूर्वज ।पता नही किन अच्छे कर्मों के कारण हम नन्दाचौर परम्परा के सम्पर्क में आये या शायद हम और हमारे पूर्वजों पर दया हुई है
,कर्मों की बात ही नही है।
आदरामान गांव की बात सबने बार बार सुनी होगी कि बापू जी आये थे और कैसे उन्होंने सतलुज दरिया
किनारे जा कर कुछ ऐसा किया कि फिर दरिया ने गांव में तबाही नही मचाई।देखने मे बात छोटी सी लगेगी कि एक गांव में बाढ़ को ही
तो रोक लगाई है पर कभी हम इस बात को महसूस कर पाए कि वो कितने कु बड़े रहे होंगे कि उनकी बात प्रकृति टाल ही नही पायी।
वो जाते हैं और दरिया मुख मोड़ लेता है ,किस स्तर की ऊर्जा से सम्बन्द्ध रखते होंगे वो?
जिनका निर्जीव सजीव प्रकृति पर राज्य है वो खुद परमात्मा स्वरूप नही हैं?
यह दिखने में छोटी सी घटना हम मूर्खो को इशारा करती है कि आप और आप के पूर्वज सचमुच बधाई
के पात्र हैं जो उस परिपूर्ण परमात्मा बापू श्रद्धा राम की छाया में बैठे।और एक बात और हम अच्छी तरह मन मे बैठा लें कि वो ऐसी
हस्ती हैं जो आज भी हैं ,साथ हैं,बस अपना ही मन कमजोर है ,इसका ही शीशा धुन्दला है जो वो दिखता नही।
आज उस हस्ती के प्रति हम क्या समर्पित करें ,क्या श्रद्धा सुमन अर्पित करें , सब कुछ तो उसका दिया है।
एहसास को प्रकट करने के लिए मुँह में बस यही
शब्द हैं
” जय बापू दी”।