ऐ बंदे अब तो इन इच्छाओं का अंत कर।
अब तो अपने स्वार्थ को खत्म कर।
सारी जिंदगी अपने बापू से मांगता रहा।
धन, सुख, खुशी, ऐश्वर्य की चाहत करता रहा।
पर वो संत भी दयालु थे।
रब जैसे कृपालु थे।।
तू मांगता रहा वो देते रहे।
तेरी हर तकलीफ को खुद पर लेते रहे।।
तुझे धन संतान सुख वो देते रहे।।
खुद की उनको सुध बुध न थी।
बस संगत की चिंता रहती थी।।
हर सांस में संगत का कल्याण किया।
यहां तक की अपना शरीर भी दान में दिया।।
उन आखरी कुछ दिनों में,
कष्ट सहे फिर सिने में,
फिर भी अपने दर्द की परवाह न की,
अपनी हर सांस भी संगत के नाम लिख दी।
तू फिर भी उनसे लड़ता है।
उन्हीं को ताने कसता है।।
कहता है वो तेरे काम अधूरे छोड़ गए।
तूझसे मुख मोड़ गए।।
बता कितना उन्हें सताएगा।
अपने स्वार्थ के लिए और कितने कष्ट देता जाएगा।।
वो रब होकर भी खुदको छुपाते रहे।
सच्चा ज्ञान और प्रेम सहज शब्दों में ही लुटाते रहें।।
अब तो उस खजाने की कद्र कर।
बस हर घड़ी प्रेम सा उनका जिक्र कर।
न आंसू बहा कर उन्हें तकलीफ दे
उनकी मुस्कुराहट को याद करके ख़ुशी लेे।।
👆From Dr. Shweta