बेनती
हाथ जोड़ बेनती करु, सुनिये दीन दयाल।
तुम लग मेरी दौड़ है, तुम ही हो रखवाल।।
आपकी भक्ति प्रेम से, मेरा मन होवे भरपूर।
राग द्वेष से चित मेरा, कोसा भागे दूर।।
अति अनुग्रह कीजिये सेबक अपना जान।
अपनो भक्ति का मुझे शीघ्र बख्शिये दान ।।
हृदय में मेरे रात दिन रहे प्रकाशित ज्ञान।
हर भक्तों के बीच में, तेरा होवे नाम।।
कपट दम्भ मेरे चित के, कभी न आवे पास।
ध्यान आपका रात दिन, मेरे मन में करे निवास।।
नित शुद्ध और बुद्ध हो, जगत के हो करतार।
नमस्कार है आपको, मेरा बारम्बार।।
बिनय करुँ मैं आप से जोड़ कर दोनों हाथ।
रखियो लाज कृपाल हूं शरण आया हूं नाथ।।
केवल पूरण ज्ञान का, घर मन में हो जाये।
घट घट व्यापक ब्रहमा है, निशदिन रहत समाये।।
ग्ुरु जी हमारे सत्य है सदा रहत है संग।
हृदय बैठे ज्ञान दे, माया करत है भंग।।
स्वामी पानप दास की, महिमा कही न जाये।
गुरु के शब्द विचार के, मुक्ति को लीजिये पाये।
औसर राखि द्रोपदा, सेकट स्यो प्रहलाद।।
कहन सुनन की कुछ नहीं, शरण पड़े की लाज।।
नामा सदना सैन की और तारा निरपनार।
राखि लज्जा सबन की तैसे मोहे उबार।।
अवगुण हरे की बेनती, सुनिये गरीब नवाज।
जे मैं पूत कपूत हां, बौड़ पिता को लाज।।
जे मैं भूल बिगाड़िया, नां कर मैला चित।
साहब गौराँ लोड़िये, नफर बिगाड़े नित।।
नफर भी ऐसा चाहिये, साहिब राखे चित।।
साहब गौरां लोड़िये, नफर बिगाड़े नित।
हम कूकर तेरे दरबार।
भौंका आगे बदन पसार।
कबीर कूकर राम का मुतिया मेरे नाम।
गले हमारे जेवड़ी, जहाँ खीचे तह जांव।।
ओम दरबार तेरा जो है, सबसे आली।
सभी बाग दुनियां का, तू ही है माली।
तेरा नाम सच्चा है, हिकमत निराली।
बनाया जगत जब नजर आप डाली।।
अगर बादशाह को तू कर दे भिखारी।
नहीं मिट सकता कोई मरजी तुम्हारी।।
अगर कंगले को देवे बादशाही।
हुआ कौन पैदा जो कर दे मनाही।।
होवे मेहर तेरी नाम की तां उड़ जाये कंगाली।
चढ़ जावे तेरे नाम की जो है लाली।।
तेरे दर पे आया कोई जावे खाली।
तूं ही सबका दाता है दुनियाँ सवाली।
करें बेनती दास सुनियो हे राम ।।
तेरी मेहर से शुद्ध होते है काम।।
ओम दरबार तेरा जो है सबसे आली।
जो आया सवाली वो जावे न खाली।।