भजन संत महिमा
ए स्वामी भूल न जाये तेरी शरण।
भुलाने वाले को भुलाये तेरी शरण ।
एं बाप जी दो आज्ञा आया तेरी शरण ।।
नाम तेरा वेद कहिं तारण-तरण ।।
आये प्रभु जी पापियों को तू पार करण ।
नाम तेरा सन्त कहिं कारण करण ।।
श्याम प्यारे नाम तेरा है विघन हरण ।।
ग्ज को ग्राह से आ छुड़ाया नंगे चरण ।।
तूँ ठाकर तूँ सिंह ज्वाला, नाम तेरा नारायण ।
नाम तेरा ठाकुर, गिरधारी दास आया है शरण ।।
कविता
नरबड़ के ताज, मेरी रखो हुन लाज ।
जुम जुम एहो काज, देना भक्ता ते धार दे ।।
नूरशाही के वासी, कट देओ जम फांसी ।
नाही करे जग हांसी, आप दष्ुटां नूँ मार दे ।
नन्दाचैर वाले, सच्चे ओम शहन शाह जी।
सदा – सदा काज आप भक्ताँ दे सार दे ।।
करो जी मेहर, नहीं तां बीतदा है कहर ।
मरु खाये के जहर, हाथों आप चाहे मार दे ।।
आरती
ओम जय जय जय गुरुदेव
ओम जय गुरुदेव दयानिधि, दीनन हितकारी। स्वामी—-
जय जय मोह विनाशक, भव वन्धन हारी ।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
ब्रहम विष्णु सदाशिव, गुरु मूरत धारी।
वेद पुराण वख्यानत, गुरु महिमा भारी।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
जप तप तीरथ संयम, दान विविध दीने।
गुरु बिन ज्ञान न होवे, कोटि यतन कीने ।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
माया मोह नदी चले, जीव बहे सारे।
नाम जहाज बिठाकर, गुरु पल में तारे,।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
काम क्रोध मद मत सर, चोर बड़े भारे।
ज्ञान खड़ग देकर में, गुरु सब सहारे।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
नना पन्थ जगत में, निज निज गुण गावे ।
स्बका सार बताकर, गुरु मारग लावे।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
गुरु चरणामृज निर्मल, सब पातक हारी।
वचन सुनत तम नाशे, सब संशय टारी।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
तन मन धन सब अर्पण, गुरु चरनन की जे।
ब्रहमा नन्द परमपद मोक्ष गति लीजे।।
ओम जय जय जय गुरुदेव।
जो कुछ है तेरा, स्वामी सब कुछ है तेरा।।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा।
ओम जय जय जय गुरुदेव।।
गुरुदेव जी की आरती, जो कोई गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी, मन वांछित फल पावे।।
ओम जय जय जय गुरुदेव
जय गुरुदेव दयानिधि, दीनन हितकारी।
जय जय मोह विनाशक, भव बन्धन हारी
ओम जय जय जय गुरुदेव।
जय कारा ओम बापू जी दा।
बोल बापू ज्वाला सिंह जी महाराज
आपजी की सदा ही जय
हाथ जोड़ बेनती करु, सुनिये दीन दयाल।
तुम लग मेरी दौड़ है, तुम ही हो रखवाल।।
आपकी भक्ति प्रेम से, मेरा मन होवे भरपूर।
राग द्वेष से चित मेरा, कोसा भागे दूर।।
अति अनुग्रह कीजिये सेबक अपना जान।
अपनो भक्ति का मुझे शीघ्र बख्शिये दान ।।
हृदय में मेरे रात दिन रहे प्रकाशित ज्ञान।
हर भक्तों के बीच में, तेरा होवे नाम।।
कपट दम्भ मेरे चित के, कभी न आवे पास।
ध्यान आपका रात दिन, मेरे मन में करे निवास।।
नित शुद्ध और बुद्ध हो, जगत के हो करतार।
नमस्कार है आपको, मेरा बारम्बार।।
बिनय करुँ मैं आप से जोड़ कर दोनों हाथ।
रखियो लाज कृपाल हूं शरण आया हूं नाथ।।
केवल पूरण ज्ञान का, घर मन में हो जाये।
घट घट व्यापक ब्रहमा है, निशदिन रहत समाये।।
ग्ुरु जी हमारे सत्य है सदा रहत है संग।
हृदय बैठे ज्ञान दे, माया करत है भंग।।