ललिता नंदवानी
देहत्याग अस्तित्व का नाश नहीं होता। शरीर भस्म हाने के बाद भी ईश्वरकोटि महापुरुष अपने भक्तों के सहायतार्थ फिर से स्वयं को किसी भी समय प्रकट कर सकते हैं। ललिता नंदवानी का अनुभव कुछ ऐसा ही है। जब वे पाँच वर्ष की थी तो खेलते-खेलते घर की छत से नीचे गिर गई। उनकी छत में ढक्का स्थित मंदिर का गुंबद दिखाई देता था। जब वह नीचे गिर रही थी तब उन्हें गुंबद से बापू श्रद्धाराम जी साफा लिए उन्हें बचाते हुए आए दिखाई पड़े। उन्होने हाथ देकर उनकी रक्षा की। छत से गिरने के कारण उन्हें गंभीर क्षती भी पहुँच सकती थी परन्तु ऐसा कुछ नही हुआ। दस दिन अस्पताल में रहने के बाद वह भली-चंगी हो गई। उस दुर्घटना के कारण उन्हें चश्मां तो लग गया लेकिन बाद में उन्होने अपने जीवन में रेकी मास्टर के तौर पर उल्लेखनीय प्रगति की। इस घटना में सबसे बड़ा चमत्कार यह है कि जिस समय ललिता को बापू जी ने बचाया उस समय तक बापू जी देहत्याग कर चुके थे। इस घटना में संगत को यह जानकारी हुई कि बापू जी हरदम, हर समय उनके साथ हैं और उनकी रक्षा करते हैं।