बापू श्रद्धा राम ने नन्दाचौर दरबार का एक रुपया भी अपने लिए नही इस्तेमाल किया,इस बात को सुना है इन कानो ने। फिर सोचता हूँ कि जितना बड़ा
व्यकितत्व उस शरीर मे प्रकट हुआ था उसके लिए रुपया मायने भी क्या रखता था।जो सिर्फ दो शब्द कह कर लोगों की ज़िन्दगी की धारा ही बदल सकते थे
,जिनका मुँह से निकला हर शब्द ब्रह्म वाक्य होता था,रुपये पैसे की और रुपये पैसे कमा कर खुद को बड़ा समझने वालों की औकात ही क्या होगी ,उस सत्य
स्वरूप परमात्मा बापू श्रद्धा राम के सामने।उस ब्रह्म सागर को पानी की बूंदे क्या सींचेगी जिसने न जाने कितने सागरों को सींच दिया।कितने बे औक़ातों को
औकात बक्श दी,कितने बे सहारों का सहारा बन गए।वो प्रकाश स्वरूप बापूजी हम सब के मार्ग को रोशन करें
जय बापू जी दी