श्री गुरु महाराज जी की वन्दना: संत महिमा
महा महिम गुरुदेव के, चरणा सीस नवाय।
करुँ वन्दना प्रेम से, नयनन रुप बसाय।।
याचत वन्दन देव भी, ऋषि मुनि योगि अपार।
ज्ञानी तापस सन्त जन, सुहृद मित्र परिवार।।
सतगुरु जी की वन्दना, जो कोई करत सप्रीत।
सब का वन्दन होत है, यह है वैदिक रीत।।
नमस्कार से मिटत हैं, रोग शोक त्रयताप।
मानस निर्मल होत है, उर में रहत न दाप।।
पुनि पुनि बन्दौ गुरु-चरण, जो हैं अग-जग टेक।
जाके सुमिरन से कटें, आवागमन अनेक।
बालक ध्रुव ने तज दिया, भोगैश्वर्य महान्।
घोर तपस्या रम गया, कर हरि छवि का ध्यान।।
कृष्ण सलौना रुप घर, आये तुरत उदार।
मस्तक परसा शंख से, हुआ भक्त उद्धार।।
सखुबाई थी बँधे कनखल पठी, पाये दर्शन पीन।।
महिमा सतगुरु देव की, कोई न कर सके बखान।
शेष गणेश न पा सके, जिस का पारावार।।
सतगुरु मेरे पूर्ण है, अतुल शक्ति भंडार।
युग युग करते आये हैं, भक्तन को भव पार ।।
महिमा तेरे दरबार की, अद्धभुत विपल अनन्त।
तेरी करुणा भी बड़ी, जाको आदि न अन्त।।
दासनदास न गा सके, धन्य धन्य हो धन्य।
सकल देव हैं कह रहें, तुझ सा कोई न अन्य।।