सत्संग और नाम महिमा: संत महिमा
सत्संग
सत्पुरुषों तथा सत्-शास्त्रों के संग को सत्संग की संज्ञा दी जाती है। सत्संग भगवद् प्राप्ति एवं आत्मोत्थान का मूल आधार है। सत्पुरुष की महिमा अपार होती है। वे प्रेम, दया, सन्तोष और परोपकार की मूर्ति होते हैं। उनके विचार और वाणी ही शास्त्र होते हैं। उनकी सत् संगत से काम, क्रोध, मोह आदि समस्त मनोविकार नष्ट हो जाते हैं। साधक आत्मज्ञज्ञानी बन जाते हैं, वे सत्य और ईश्वर को प्राप्त कर लेते हैं। सन्तों की सत्संगति में रहकर व्यक्ति सभी त्रिविधितापों से छुटकारा पा लेता है। सन्त पानप देव सत्संग की महिमा का वर्णन करते हैं-
सन्त मिले हरि मारग पावे,
सत्संगी हरि निकट न आवे।
सत्संग से सबजग सूझै,
होय सत्संगी भ्रम न पूजै।।
मन में धुन लागी रहे,
तिन की संगत कीजे।
कहै पानप पत्थर मत मेरी,
सत्संग मिले तो भीजे।।
नाम महिमा
आध्यात्मिक जग में ’नाम’ का परम विशिष्ट स्थान है। कहते भी आये हैं – ’’हरि से बड़ा हरि का नाम’’। यही नाम भक्त को भवसागर से पार उतारता है। पानप देव जी के मतानुसार राम नाम ही जीवन का आधार है, सभी सन्तापों को दूर करने वाला है। भगवद् प्राप्ति में सहायक है। वे कहते हैं-
’’नाम बिना निर्मल नही,
जो कोटिक तीरथ नहाय।
कहै पानप स्थिर नहीं सुरत मन,
जन्म अकारथ जाय।।’’
तथा –
’’नाह ही सांचा नाम ही सूंचा,
नाम लगे तो जग सूं उंचा।
नाम बिना जग नर्क हो जाय,
कहै पानप हरजन रहै चरन समाय।।
राम नाम पूँजी तेरी,
हृदय राख परोय।
राम नाम हृदय धरै पानप,
तब हरि का दर्शन होय।।’’