आरती संत महिमा पेज 3
आरती
अपनी ‘वाणी‘ के ‘आरती‘ अंग में सन्त पानप देव ने ‘‘सुरत – शब्द-योग‘‘ क्रिया का वर्णन किया है। उनका मत है कि योगी (साधक) सुरत सुन्न में पहुँचकर ‘अनहद‘ नाद सुनता है। वह योग द्वारा आत्म साक्षात्कार करता है। अन्ततः उसका प्रभु से मिलना हो जाता है। पानप देव जी आपकी ‘वाणी‘ में फरमाते हैं –
प्रातः उठो सुमरण सजो, आठ पहर की याद।
नवे खण्ड वासा करो, सुनो अनाहद नाद।।
बंसी बाजै गगन में, जहाँ तत्व मिल पाँच।
कह पानप यह मुक्ति है, वस्तु सीख लो साँच।।
सन्त पानप देव जी को प्रकृति के विभिन्न रुपों में आरती और अनहद नाद की गूँज सुनाई देती है –
‘‘ दोउ रवि- चन्द मिल गगन में झिल-मिलें,
सीपः स्वाति बिन झलके मोती।
पवन आरती करे प्रगट अचरज भया,
काया पलट कग भये हंस गोती।।
तथा ‘‘ ऐसी आरती कर मन मेरे, सकल विघ्न मिट जायें तेरे‘‘।