सफरनामा
उस रब दे रुबाने वाली हानी तकदीर ने,
जो दाना पानी वतन नूं फकीर दा उठा लिया।
दिल्ली ते लाहौर लुधियाना मुलतान ते,
बटाला, पटियाला भी घुम लिया।
जयपुर जालन्धर ज्वाला देवी जोधपुर,
काँगड़ा सर हिन्द बसी सारे ही रुला लिया।
भटनेर, अजमेर और शहर बीकानेर ते आनन्दपुर,
सोडिया दे होल्डा उड़ा लिया।
बागड़ ढंडार बृज मालवा पहाड़ घनी माझा,
पोठेवार ते पंजाब सारा गाह लिया।
कच्छी दक्षिण बंगाले सिंध मुल्क रुहेलियां दे,
चार ड़े फकीर इक बार फेरा लिया।
जमना ते रावी नाले झेलम चनाब बिच,
नीली ते व्यास सब तीर्थ में नहा लिया।
गोमती द्वारका, कावेरी कुरुक्षेत्री गंगोत्री,
जमनोतरी कैदार भी मना लिया।
काली कलकते वाली नैना देवी हिंग लाज,
लाटाँ वाली वैष्णों दी यात्रा को जा लिया।
मथरा दे पेड़े शीरीनी गोंद वाले दी,
पेशावर दा आड़ू मजेदार भी खा लिया,
अन्न जल फेर बीकानेर खाई मिशरी,
दुपट्टा काशी शहर दा वी असां ने हंडा लिया।
देश ते विदेश कभी रोड कभी केस,
कभी गेरुये सा भेस, जा फकीरों से रंगा लिया।
धूनिया जलाए सिर खाक धूल पाय,
कई मन्त्र कमाए तन अपना जला लिया।
धो लिया जे धारा, जाके विखड़े पहाडंा,
होर मुल्क हजारां, देख दिल को रिझा लिया।
भौंदियां भवांदिया रुलां दिया जहान विच,
सं 1930 नूरशाह आ निका लिया।
लाखन करोडन जनम के पुनन कर,
गहर ते गम्भीर गुरु गोविन्द दिखालिया।
सिंह सरदार सच्चे सूरमा ज्वाला सिंह,
जान के निकारा दास अपना बना लिया।
कृपा की मूरत जनबा महाराज मेरे,
मैं तां हो गया गुलाम सुनी यार मतवा लिया।
चरण कमल गुरु सूरमे दे चित जोड़के,
राम ते रहीम थी मैं ता सभी कुछ पा लिया।
काम ते क्रोध लोभ मोह वाली फौज नू,
मैं इसे गुरु सूरमे दी कृपा से टालिया।
मन्त्र से मन नूं स्वासां नाल जोड़के,
दीवड़ा अगम घट मांहि ही जगा लिया।
मरने से डरना भजन नित करना है,
इस तरह तरना इह गुरांने सिखा लिया।
इक बेर फेर हम तीर्थ परसने को,
बिना पूछे गुरुां चोरी कदम उठा लिया।
थक गये पैर ते निकारी जही जिन्दड़ी सी,
यार पसरीचे खत भेज के बुला लिया।
छोहरे कवित छनद सोरठे, सवैये कई,
ळोर भी बनावां, पर गुरा ने हटा लिया।
भादों दी चैदहवीं ते सं 1935 विच,
छास ने कवित झट-पट यह बना लिया।
(कलीद-उल-कल्ब से)