ठाकुर जी और त्रिदेवों (ब्रहमा, विष्णु, महेश) की सत्संगतिः संत महिमा

ठाकुर जी और त्रिदेवों (ब्रहमा, विष्णु, महेश) की सत्संगति: संत महिमा

ठाकुर जी और त्रिदेवों (ब्रहमा, विष्णु, महेश) की सत्संगतिः
साधांवाली मन्दिर का निर्माण हो गया था। ठाकुर जी उसमें निवास करने लगे थे उनकी दिनचर्या का यह एक अंग बन गया था कि वह रात भर गुफा में साधना-उपासना में लीन रहते और प्रातः काल में संगत को दर्शन देते थे। एक प्रातः भक्त-जन दर्शनार्थ एकत्रित हुए सूर्योदय हो गया। दिन चढ़ने लगा लेकिन ठाकुर जी गुफा से बाहर नहीं निकले। सत्संगी भावी दुर्घटना की आशंका से चिन्तित हो उठे। उन्होंने गुफा के भीतर से आती हुई अट-पटी आवाजें सुनी त्राहिमाम्-त्राहिमाम्, रक्षमाम्- रक्षमाम् की ध्वनि ने संगत की चिन्ता को और भी बढ़ा दिया किन्तु जब उन्होने कुर्बान-कुर्बान की ध्वनी सुनी तो उनकी जान में जान आई। फिर भी वे वस्तुस्थिति को पूरी तरह समझ नही पाये। परमहंस जी के आने में बहुत देर होते देख संगत ने बाबा मानसिंह से प्रार्थना की कि कृप्या वास्तविकता का पता लगायें। संगत के अनुरोध पर बाबा मानसिंह ने एक झरोखे से गुफा में देखा कि ठाकुर जी वीर आसन में अपने स्थान पर विराजमान हैं उनके सामने ब्रहमा, विष्णु, और महेश अपने आसन ग्रहण किये है। ठाकुर जी दिव्य ज्योति से प्रकाशित हैं और उन सबके तेज से गुफा प्रकाशित हो रही है। बाबा मानसिंह यह अद्भुत एवं दिव्य दृश्य देखकर अति आनन्दित एवं चकित हुए। तभी ठाकुर जी ने गुफा से बाहर आकर संगत को दर्शनों से नवाज़ा, संगत ने नतमस्तक होकर उनकी वंदना की, फिर बाबा मानसिंह ने विनम्रतापूर्वक विनती की कि महाराज जी आज संगत आपके दर्शनों के लिए बेकरार रही। गुफा में आपको किस कारण विलम्ब हो गया। कुशल तो थी । ठाकुर जी ने मधुर वाणी में कहा, आज गुफा में ब्रहमा, विष्णु, महेश त्रिदेव पधारे थे। उनकी सत्संगी में बैठे रहे। आनंद रहा। भक्तों ने जानना चाहा कि आप जी ने गुफा में जिन शब्दों का उच्चारण किया था उनका क्या अभिप्राय था। महाराज जी ने फरमाया कि जब तीनों देव ने पुछा कि अब कैसा समय आने वाला है तो हमने कहा, ’’अन्धेर अन्धेर’’ दुनिया घोर पापों से भर जाएगी, तब उन्होने प्रार्थना की ाहिमाम्-त्राहिमाम्, रक्षमाम्- रक्षमाम जब हमने बताया कि उसके बाद सतयुग आयेगा। सभी ओर सुख-शान्ति और आनन्द हो जाएगा। इस पर देवों ने कहा, कुर्बान कुर्बान। अब संगत को ठाकुर जी की दिव्य शक्ति का ज्ञान हुआ ठाकुर जी की वाणी सुनकर संगत निहाल हो गयी।

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